Thursday, October 16, 2008

आगे आगे देखिए होता है क्या..

क्या कहें समझ में नहीं आता। ये तो एक बहुत ही अच्छी शुरुआत है। कहने के लिए कुछ है भी नहीं मगर कहने का मन ज़रूर है। ब्लौगर का ट्रांसलिटरेशन सॉफ्टवेअर काफ़ी असरदार है। काफ़ी कामयाब। अभी तक मेरा ध्यान पूरी तरह से इसकी शब्दों को भांपने की काबिलियत पर लगा हुआ है। अंग्रेज़ी के फुल स्टाप को पूर्णविराम में बदल देना भी एक अच्छा कदम साबित हुआ। अन्य ट्रांसलिटरेशन प्रोग्रामों की तरह ये पूरी तरह तार्किक, या लौजिकल नहीं है। कहें तो काफी प्रिडिक्टिव, यानी कि भंपनशाली है। अगर आप रोमन लिपि में हिन्दी लिखने में कुछ गलती कर भी देंतो ये काफी हद तक उसे सुधार लेगा। लेकिन इसके अपने नुकसान भी हैं। जैसा की हर उस चीज़ के साथ होता है जो सिर्फ़ आदेश नहीं लेती, ये प्रोग्राम अपनी अक्ल लगाने के चक्कर में कई बार दिक्कत भी दे सकता है। जहां भी भांपना आ जाता है वहाँ हर वो चीज़ जो भांपी जा सकती है सही होगी। लेकिन हर वो जो सोची जा सकती है उसका सही होना ज़रूरी नहीं है। जैसे कि ये शब्द: प्रिडिक्तिव, जो कि लिखा जाना चाहिए प्रिडिक्टिव। अभी तक के लेखांतरण में ये उन कुछ चुनिन्दा शब्दों में से है जिनके लिए 'बरहा' का प्रयोग करना पडा। भांपने के विपरीत, 'बरहा' जैसे प्रोग्राम जो नियमबद्ध हैं वो शुरुआती दिक्कतें तो ज़रूर देते हैं लेकिन एक बार नियमों से जान पहचान होने के बाद हर वो शब्द जो आप सोच सकते हैं, लिखा जा सकता है क्योंकि बारहा सोचता नहीं है। वो सिर्फ़ नियमबद्ध रूप से निर्देशों का पालन करता है। इसलिए भांपने और परिणामस्वरूप ग़लत भांपे जाने की कोई संभावना ही नहीं है। अगर ब्लौगर का ट्रांसलिटरेशन एक ऐसा व्यक्ति है जो आपकी ग़लतियों से भी ये समझने की कोशिश करता है कि आप क्या कहना 'चाह रहे होंगे' तो 'बारहा' एक ऐसा व्यक्ति है जो सिर्फ़ पूर्वनिर्धारित भाषा ही समझता है। आप ग़लत बोलेंगे तो वो उसे सही करके नहीं समझेगा। लेकिन ब्लौगर ये निर्धारित कैसे करेगा कि आप गलती ही कर रहे हैं और ऐसा कुछ कहने की कोशिश नहीं कर रहे जो वो ना 'भांप' सके? यहाँ 'बारहा' वही समझेगा जो आप कह रहे हैं क्योंकि 'बारहा' अपना दिमाग नहीं लगाता। सिर्फ़ निर्देशों का अनुसरण करता है। इसलिए अगर आप उसके नियमों को समझ गए हैं तो कुछ भी जो आप 'सोच' सकते हैं, कह सकते हैं। वो आपको ये बताने की ज़िद नहीं करेगा कि आप क्या 'कहना चाह रहे होंगे' मगर शायद रोमन लिपि का प्रयोग ढंग से कर नहीं पा रहे।

दोनों में फ़र्क सोचने वाले और मानने वाले का है।

अब नींद बहुत आ रही है। सोना चाहिए।