छवि
धुल जा ओ छवि
जा मेरे मन गगन से
ना लौट बन के रवि
हर दिन मेरे स्मरण से
तेरे रंग अब पोंछने हैं
रक्तमय इस कलाई से
ये आकार अब मिटाने हैं
निजधारा से या सलाई से
धुल जा ओ छवि
जा मेरे मन गगन से
तुझे जाना ही है
या बल से या नमन से
जा मेरे मन गगन से
ना लौट बन के रवि
हर दिन मेरे स्मरण से
तेरे रंग अब पोंछने हैं
रक्तमय इस कलाई से
ये आकार अब मिटाने हैं
निजधारा से या सलाई से
धुल जा ओ छवि
जा मेरे मन गगन से
तुझे जाना ही है
या बल से या नमन से