नाद वाद विवाद संवाद
एक दोस्त से पूछा कि ब्लौग क्या है जानते हो? दोस्त ने जैसे ही ना कहा तो अपने चेहरे पर दुनियादारी की मुस्कुराहट उभर आई। सोचा चलो इसी बहाने अपना डेढ़पन जता डालें। हमने कहा मियाँ किस अरसे में रहते हो। आजकल हर कोई ब्लौग कर रहा है। वो बोले 'कर रहा है' से मतलब? तो हमने कहा अरे मियाँ शायद इसी मामले में पीछे रह गए तुम वरना लगता है भाषा के नारीकरण से तो ख़ूब वाक़िफ़ हो। हमारे दोस्त अपनी कब्ज़ियत को पूरी तरह ज़ाहिर करते हुए बोले, "किसके क्या से वाक़िफ़ हो?"। हमने कहा यार बनो मत, माना हमने ब्लौग पर तुम्हारी चुटकी ली लेकिन इसका मतलब ये नहीं के तुम अब हमारी टांग खींचो। इस पर भी जब उनकी कब्ज़ हल्की नहीं हुई तो हमने सोचा कि शायद इन्हें लग रहा है कि जैसे इन्हे ब्लौग नहीं पता वैसे ही हमें नारीवाद के बारे में कुछ नहीं पता। इसी लिए अनजान बनने का नाटक किया जा रहा है। फ़िर भी हमने सफाई देने की तर्ज़ से बचते हुए कहा, "अरे मियाँ आप नहीं जानते आजकल अंग्रेज़ी ज़बान से ज़ुल्मोसितम को मिटाने की मुहिम चालू है। इसलिए 'कोई' या 'फलाना' अब 'करता' नहीं 'करती' है, 'होता' नहीं 'होती' है। और ग़लती से किसी अदाकारा को 'ऐक्ट्रेस' ना कह बैठना; अब सब 'एक्टर' हैं, चाहे लड़का हो या लड़की। समझे?"। हमारे दोस्त तुनक कर बोले, "अरे ये क्या तुक हुई? एक जगह पहचान बनाओ, एक जगह से मिटाओ?" हमने अपनी सिगरेट का एक लम्बा कश भरते हुए दूसरे कोने की तरफ़ देखा और कहा, "छोड़ो मियाँ, ये ऊंची चिड़िया है, तुम्हारे हाथ नहीं आएगी।" दूसरा दम भरते हुए हमने अपनी भवें ऊंची कीं और अंदाज़ से कहा, "इसे नारीवाद कहते हैं"। "नारीनाद? ये नारीनाद क्या है? जैसे शंखनाद?", वो बोले। हम ठहाका लगाते हुए बोले, "'वाद' मियाँ 'वाद', 'नाद' नहीं। 'नाद' मतलब 'तेज़ या ऊंची आवाज़' और 'वाद' मतलब 'मुहिम' या 'सोच'। अच्छा मज़ाक कर लेते हो।" हमारे दोस्त ने अपनी समझदारी का दम भरते हुई कहा, "नहीं नहीं बात तो सही है। ज़ुल्म तो है ही। औरतों को सही पहचान नहीं मिली है। देखो जैसे कि, 'आएगा, आएगा, आएगा आने वाला...' तो सही है, लेकिन 'मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम...' और 'पत्थर के सनम...' तो बिल्कुल ग़लत है। जहां लड़की की तरफ़ इशारा है वहाँ 'मेरे' और 'के' का इस्तेमाल क्यों?" हमारा कश आधे में ही रह गया। हमने गर्दन घुमा के अपने दोस्त की तरफ़ देखा तो उनके चेहरे पर कब्ज़ियत नहीं गहरी सोच झलक रही थी। हमने हाँ हाँ करते हुए कहा, "शायद इसीलिए तुमने 'ब्लौग कर रहा है' सुन के टोक दिया और इतनी देर से बिना वजह हमारी टांग खींच रहे हो, है कि नहीं?"। ये सुनते ही उनके चेहरे पर कब्ज़ियत फ़िर से मंडराने लगी। हमने कहा यार बस हुआ, अब और मज़ाक ना उड़ाओ हमारा। इस पर वो हिचकिचा के बोले, "मियाँ हमने तो 'कर रहा है' पर इसलिए टोका था कि हमें लगा कोई चीज़ है, की जाने वाली चीज़ है ये नहीं सोचा था।"। अब तो हम अन्दर से बौखला उठे। समझ नहीं आ रहा था कि छक्कन मियाँ सही में हमारी ले रहे हैं या फ़िर अव्वल दर्जे के बेवक़ूफ़ हैं। हमने किसी तरह अपना आपा बनाए रखते हुए कहा, "थी तो चीज़ ही लेकिन जब काफी लोग इस्तेमाल करने लगे तो ब्लौग के एक चीज़ होने के साथ साथ उसको इस्तेमाल करना 'ब्लौग करना' हो गया। ठीक उसी तरह जैसे गूगल की मदद से कुछ ढूँढना 'गूगल करना' हो गया। कब्ज़ियत से शागिर्दगी की तरफ़ बढ़ते हुए छक्कन मियाँ बोले, "गूगल?"। उनका ये कहना था कि हमें रहमत की चीखें, ग्लास चम्मचों की खनक, और अपने समोसों की महक सब वापस आती हुई महसूस हुईं।
2 Comments:
khub miya ! khub
chaalu rakkho kai arse baad hindi mein kisi ko kuch likhte dekha
woh bhi bloge pe. Shayad main agyaat hoon ki log hindi mein bhi blog likhte hain, par der sahi durust aaya !
Isko to aayi nahi kar sakte miyan ?
ब्लौग पर हिन्दी कोई नई चीज़ नहीं है। लोग अरसे से करते आ रहे हैं। इसीलिए तो ब्लौगर ने हिन्दी ट्रान्सलिटरेशन शुरू किया है। इसके अलावा बरहा भी है। हिन्दी राजनीति का शिकार भी तो है। मगर जिन्हें लिखना है वो तो लिखेंगे ही।
आख़िरी जुमला कुछ समझ नहीं आया...
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